श्रीमहाप्रभुजीके कालमें पुष्टिमार्गके अनुयायीओंकी संख्या उंगलियों पर गिनी जा सके उतनी सीमित थी फिर भी तत्कालीन शिष्योंमें शास्त्र और सम्प्रदाय का तलस्पर्शी ज्ञान रखनेवाले श्रीदामोदरदास, श्रीकन्हैयाशाल, श्रीपद्मनाभदास, श्रीराणाव्यास, श्रीविष्णुदास, श्रीजगन्नाथ जोषी, श्रीमाधवभट्ट जैसे अनेक शिष्य थे.
श्रीआचार्यचरणोंके स्वधाम पधार जानेके पश्चात् सम्प्रदायके नेतृत्वके क्षेत्रमें शून्यावकाशसा हो गया. उस समय सम्प्रदायके हितका विचार करके राणाव्यास, दामोदरदास तथा कन्हैयाशाल जैसे वैष्णव शिष्योंने श्रीगोपीनाथजी तथा श्रीगुसांईजी को सम्प्रदायका अध्ययन कराकर सम्प्रदायको सक्षम नेतृत्व प्रदान किया था. इसी तरह अर्वाचीन कालमें भी जब-जब सम्प्रदायके गुरुजन अपने उत्तरदायित्वके प्रति उदासीन हुवे तब-तब पंडित श्रीगोवर्धन शर्मा, श्रीगोकुलदासजी सांचोरा, शास्त्री श्रीवसन्तरामजी, शास्त्री श्रीहरिशंकरजी, श्रीमग्नलाल शास्त्री, श्रीनानुलाल गांधी, श्रीजेठालाल शाह, श्रीद्वारकादास परीख, श्रीधीरजलाल संकळीया, श्रीमूलचन्द्र तेलीवाला जैसे विद्वान् पुष्टिमार्गीओंने श्रीवल्लभवंशजोंको शास्त्रोंका अध्ययन कराकर, ग्रन्थोंका प्रकाशन-अनुवाद-लेखन-प्रवचन करके सम्प्रदायकी सेवा की और सम्प्रदायको किसी तरह टिकाये रखा.
आज पुष्टिमार्गके अनुयायीओंकी संख्या उस समयकी तुलनामें यद्यपि अनेक गुनी अधिक हो गई है फिर भी सम्प्रदायका तलस्पर्शी ज्ञान रखने वाले और कठिन समयमें सम्प्रदायके नेतृत्वको उनके उत्तरदायित्वका भान करा सकें ऐसे शिष्योंकी भयानक कमी महसूस हो रही है. सम्प्रदायकेलिये गुरुवर्गका शास्त्रीय योग्यतासे सम्पन्न होना जितना आवश्यक है उतना ही आवश्यक शिष्यवर्गका भी शास्त्रीय योग्यतासे सम्पन्न होना है ही. विडम्बना, परन्तु, यह है कि किसी पुष्टिमार्गीको शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त करना हो तो वह मिलता कहां है? क्या पुष्टिमार्गके पास ऐसा एक भी स्थान है कि
- जहां अपने अनुकूल समयमें जा कर कोई व्यक्ति संस्कृत, शास्त्र तथा सम्प्रदायके मूल ग्रन्थोंका व्यवस्थित अध्ययन कर सके?
- जहां श्रीवल्लभ सम्प्रदायके मूल ग्रन्थोंका तथा संस्कृत भाषा-तर्कशास्त्र-वेदान्त आदि विद्याशाखाओंका अध्यापन कर सकें ऐसे अध्यापक सदा उपलब्ध हों!
- जहां स्वच्छ-सुघड आवास तथा सात्त्विक भोजन उपलब्ध हो!
- जहां शान्त-सुन्दर अध्ययनकक्ष तथा समृद्ध पुस्तकालय हो!
- जहां अध्ययनकेलिये अपने सेव्य प्रभुको पधराकर जाने पर सेवानुकूल सुविधा भी उपलब्ध हो!
अन्य सम्प्रदायोंकी ओर देखें तो उनके गुरुकुल, आश्रम, मठ, पाठशाला, उपाश्रय आदि राज्य, जिला और गाम तकके स्तर पर उपलब्ध होते हैं. कितने आश्चर्य और खेदकी बात है कि इसके सामने हमारी प्राणभूत आवश्यकता समान यह व्यवस्था हमारे सम्प्रदायके पास समग्र विश्वमें एक भी नहीं है.
श्रीवल्लभाचार्य ट्रस्ट (मांडवी-कच्छ) ने समस्त पुष्टिमार्गीओंके सहयोगसे इस पावन कार्यको सम्पन्न करनेका बीडा उठाया है. ‘‘श्रीवल्लभाचार्य विद्यापीठ’’ नामसे ट्रस्ट एक बहुहेतुक विद्यालयकी स्थापना करने जा रहा है. इस विद्यापीठमें पुष्टिमार्गीओंके सहयोगसे अधोलिखित सुविधाएं क्रमशः उपलब्ध करायी जायेंगी.
- अध्ययन खंड
- पुस्तकालय
- डिजिटल लेबोरेट्री
- प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थोंका संग्रहालय तथा डिजिटलाईजेशन् केंद्र
- श्रीवल्लभाचार्य संकीर्तन भवन
- गोशाला
- अध्यापक आवास
- विद्यार्थी आचार्यवंशजोंकेलिये आवास
- विद्यार्थी वैष्णवो माटे आवास
- कुलपति आवास
- अतिथि आवास
- वैष्णव निवास (अपने सेव्य प्रभुकी सेवा करते हुवे एकान्तमें ग्रन्थाध्ययन तथा अनुसन्धान करनेकी व्यवस्था)
- भोजनालय आदि.
At Shri Vallabhacharya Vidyapeeth subject experts of Sanskrit Sahitya Vyakaran, Nyayshastra, Yogshastra, Vedant etc would be available on permanent basis.
On various Sampradayik and Shastriya subjects scholars with special knowledge would be invited to conduct workshops.
Audio-Video conference and also live study of granths by Goswami Shri Shyammanoharji and other acharyas would be conducted regularly.
Classes for study of Sampradayik granths, School for children, Sanskrit Classes, Sankirtan will be held regularly.
Pravachan held at different parts of India also teaching sessions held regularly by pushtimargiya experts at their own centers would be live telecasted at the university.
Purnakalin residential students studying in Sanskrit medium will get facility to study to achieve government recognized certificate/degree courses.
Residential programs will be held on different sampradayik subjects on time to time basis.
Dharm-Sanskar programs for Non Resident Indian vaishnav students would be held in English on time to time basis.
Special facility with guidance would be given to research scholars.
Help would be provided to Digitalized own collection of Handwritten artifact granths